Friday, September 4, 2009

भारत के एक वैज्ञानिक ने मेंढकों की तीन ऐसी दुर्लभ प्रजातियाँ ढूँढने का दावा किया है जो अपने अंडे देने के लिए घोंसले बनाते हैं.

मेंढक की ये प्रजातियां केरल और कर्नाटक की पश्चिमी पहाड़ी श्रंखलाओं के जंगलों में पाई जाती है जहाँ ख़ूब बारिश होती है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉक्टर एसडी बीजू का कहना है कि ये छोटे-छोटे मेंढक 12 सेंटीमीटर तक लंबे होते हैं. ये मेंढक अंडे देने के बाद उन्हें गर्मी, शिकारी पक्षियों और कीड़ों से बचाने के लिए घोंसले बनाते हैं.

ये मेंढक पत्तियों को ऊपर से नीचे तक इस तरह से मोड़ते हैं कि उससे अंडे रखने के लिए एक घोंसला बन जाता है और किसी चिपचिपे पदार्थ से उसे मज़बूत भी बना देते हैं ताकि अंडे बाहर ना निकल सकें.

डॉक्टर बीजू का कहना था, "ये दुर्लभ प्रजाति के मेंढक हैं और एशिया भर में सिर्फ़ यहीं पाए जाते हैं."

वैज्ञानिक को दुर्लभ प्रजाति के इन मेंढकों का पता 20 वर्ष के शोध के बाद चला है. यह शोध उन्होंने केरल के वायनाड क्षेत्रों और कर्नाटक के कूर्ग क्षेत्र में किया.

डॉक्टर बीजू का कहना था कि मेंढकों की यह प्रजाति अमरीका और अफ्रीका में पाई जाने वाली उस प्रजाति से भिन्न हैं जो पत्तियों का घोंसला बनाती है क्योंकि उस प्रजाति के मेंढक तब घोंसले बनाते हैं जब उनकी मादाएँ अंडे देती हैं.

डॉक्टर बीजू के अनुसार अमरीका और अफ्रीका में पाई जाने वाली प्रजातियों के मेंढक अंडे देते समय ही घोंसले बनाते हैं जबकि यह काम नर और मादा दोनों साथ मिलकर करते हैं जबकि कॉफ़ी और अन्य तरह के वृक्षों की भरमार होने से इस भारतीय प्रजाति के मेंढकों पर लुप्त होने का ख़तरा मंडराने लगा है.

डॉक्टर बीजू कहते हैं, "आठ वर्ष पहले जब मैंने उस क्षेत्र का दौरा किया था तो ऐसे मेंढकों को रात में ढूँढ पाना आसान था लेकिन हाल के समय में तो नाटकीय बदलाव आया है और अब इस प्रजाति के मेंढकों को ढूँढ पाना बेहद मुश्किल है."

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