अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के इस विशेष सम्मेलन की अध्यक्षता की.
प्रस्ताव 1887 के तहत उन सभी देशों से परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने को कहा गया है, जिन्होंने अभी तक इस संधि को स्वीकार नहीं किया है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अगले साल इस मुद्दे पर समीक्षा करने के लिए एक सम्मेलन करेगा.
भारतीय विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने शुक्रवार रात पत्रकारों से कहा, "लंबे समय से हमारी ये नीति रही है कि पूरी दुनिया से परमाणु हथियार ख़त्म किए जाएँ. लेकिन हम ऐसी कोई संधि स्वीकार नहीं कर सकते जिसके तहत कुछ देशों को ऐसे हथियार रखने की इजाज़त मिलती हो."
भारत और इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया है और बाक़ी देशों पर अप्रसार संधि थोप रहे हैं.
अमरीका की अगुआई में पारित इस प्रस्ताव का रूस और चीन ने भी समर्थन किया.
ओबामा की प्रतिबद्धता
हमने जो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया है, उसमें हमने उस लक्ष्य को हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, जिसमें परमाणु हथियारों के बिना दुनिया की बात है
वर्ष 1945 में सुरक्षा परिषद के गठन के बाद ये सिर्फ़ पाँचवीं बार है कि सुरक्षा परिषद की बैठक सम्मेलन के स्तर पर हुई है.
साथ ही बराक ओबामा अमरीका के पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने सुरक्षा परिषद के किसी सम्मेलन की अध्यक्षता की है.
अध्यक्ष के रूप में ओबामा ने प्रस्ताव पारित होने की घोषणा की. उन्होंने कहा, "हमने जो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया है, उसमें हमने उस लक्ष्य को हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, जिसमें परमाणु हथियारों के बिना दुनिया की बात है."
ओबामा ने कहा कि इस प्रस्ताव से सुरक्षा परिषद समझौते को एक व्यापक आधार दिया जा रहा है ताकि परमाणु ख़तरों को कम किया जा सके.
उन्होंने कहा कि किसी भी बड़े शहर में एक परमाणु हथियार का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर विनाश ला सकता है.
ओबामा ने कहा कि ये किसी एक देश को निशाना बनाने की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून खोखले वादे नहीं और संधियों को लागू कराने की आवश्यकता है.
रूस के राष्ट्रपति डिमित्रि मेदवेदेव ने कहा है कि हमारा मुख्य लक्ष्य उन देशों के बीच समस्याओं की गाँठों को खोलना है, जो परमाणु अप्रसार और परमाणु निशस्त्रीकरण चाहते हैं.
उन्होंने कहा, "ये जटिल मामला है क्योंकि देशों के बीच अविश्वास का स्तर बहुत ज़्यादा है. लेकिन इसे किया जाना ज़रूरी है."
राष्ट्रपति ओबामा के सहयोगी इस प्रस्ताव के पारित होने को उनके पूरे परमाणु एजेंडे का समर्थन मानते हैं, जो उन्होंने इस साल अप्रैल में प्राग में अपने भाषण में रखा था.
उन्होंने उस समय परमाणु हथियारों के बिना दुनिया के लिए प्रतिबद्धता जताई थी.