आकाशवाणी पर कल प्रसारित विदेश सचिव श्रीमती निरूपमा राव के साक्षात्कार का प्रतिलेखन निम्नलिखित है। यह साक्षात्कार वरिष्ठ पत्रकार श्रीमती कल्याणी शंकर द्वारा लिया गया। कल्याणी शंकर: निरूपमा जी, विदेश सचिव का कार्यभार संभालने से पहले आप चीन में भारतीय राजदूत रही हैं। आपको भारत-चीन नीति की पूर्ण जानकारी है। क्या आपको लगता है कि चीन का विरोध विधान सभा चुनावों में हुए भारी मतदान के कारण है अथवा कुछ अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं जैसे कि पाकिस्तानी प्रधान मंत्री श्री गिलानी का बीजिंग दौरा? पिछले कुछ महीनों के दौरान चीनी घुसपैठ की खबरें भी आ रही हैं। इसके साथ ही चीन द्वारा कश्मीरियों को अलग से कागज पर बीजा जारी करने जैसे विवादास्पद मुद्दे भी सामने आए हैं। विदेश सचिव: चीन के साथ अपने संबंधों में हम दीर्घावधिक संदर्श को ध्यान में रखते हैं। चीन हमारा सबसे बड़ा पड़ोसी देश है। चीन के साथ हमारी काफी लम्बी सीमा लगती है। सीमा से संबंधित कुछ अनसुलझे मुद्दे भी हैं जिनका अभी समाधान किया जाना है और इसीलिए आपने जिसका संदर्भ दिया और चीनी विरोध दोनों देशों के बीच विद्यमान अनसुलझे सीमा प्रश्न के संदर्भ से जुड़ा हुआ है। हम इस मुद्दे पर विशेष रूप से ध्यान दे रहे हैं। साथ ही इस बात को समझने की आवश्यकता है कि अनेक क्षेत्रों में चीन के साथ संबंधों का विकास भी हुआ है। संबंधों का यह विकास और अच्छे संवाद के कारण निर्मित वचनबद्धता एवं दोनों देशों की सरकारों और वस्तुत: शैक्षिक संस्थानों, व्यावसायिक एवं औद्योगिक वृत्तों के बीच बेहतर समझबूझ और बेहतर सम्पर्क सुविधा पिछले बीस वर्षों के दौरान स्थापित हुई है। इन्हीं कारणों से दोनों देश एक दूसरे के साथ संवाद करने की बेहतर स्थिति में आए हैं। जहां तक दोनों देशों के बीच सीमा प्रश्न का संबंध है। अभी मतभेदों को कम करने तथा बेहतर समझबूझ स्थापित करने की दिशा में लम्बी दूरी तय करनी है। शनै:-शनै: ही सही परन्तु इस दिशा में निश्चित रूप से प्रगति हो रही है। हमारे पास विशेष प्रतिनिधियों से संबद्ध तंत्र विद्यमान है जिसकी नियुक्ति दोनों सरकारों द्वारा इन मामलों की जांच करने के लिए की गई है और अब तक उनके बीच वार्ता के तेरह दौर संपन्न हो चुके हैं। जहां तक सीमा प्रश्न का संबंध है, विरोध और घुसपैठ की इन रिपोर्टों के बावजूद निश्चित रूप से इस बात को समझा जाना चाहिए कि दोनों देशों के बीच संबंधों की वर्तमान स्थिति यही है और हम सीमा प्रश्न का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करने पर बल दे रहे हैं। मेरा मानना है और मैं ईमानदारी से कह सकती हूँ कि दोनों सरकारें इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि संवाद को छोड़कर इस विवाद का समाधान करने का कोई अन्य तरीका नहीं है। इसका समाधान वार्ता के जरिए ही किया जाना होगा। मुझे भारत के प्रथम प्रधान मंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1962 में संसद में दिए गए वक्तव्य का स्मरण हो रहा है और मैं उद्धृत कर रहा हूँ, ''हम पेइचिंग पर धावा नहीं बोल सकते।'' परन्तु हमें एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अवश्य अपनाना चाहिए कि हमारे बीच मतभेद हैं जो सीमावर्ती क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा की अपनी-अपनी समझ से जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही पारस्परिक क्षेत्रीय दावों के संबंध में भी मतभेद हैं। इसलिए यह मामला जटिल है। यह विश्व में विद्यमान सबसे जटिल सीमा प्रश्नों में से एक है। परन्तु मेरा मानना है कि यह एक अच्छा घटनाक्रम और सकारात्मक कारक है कि दोनों देश इन मुद्दों का समाधान करने के लिए कृतसंकल्प हैं। कल्याणी शंकर: क्या आपको लगता है कि दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच होने वाली अगले दौर की चर्चाओं में घुसपैठ के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे को उठाया जा सकता है क्योंकि यह भी सीमा से ही संबंधित है? विदेश सचिव: वस्तुत: आजकल घुसपैठ और अरुणाचल प्रदेश से संबंधित मुद्दे पर जो बल दिया जा रहा है उसके समाधान के लिए भी दोनों पक्ष आमने सामने बैठें और पूरी गंभीरता और संकल्प के साथ उन समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करें। मैं समझती हूँ कि दोनों सरकारें इस बात को समझती हैं कि भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण संबंध न सिर्फ दोनों देशों और इस क्षेत्र बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए हितकारी है। आप उन मुद्दों को देखें जिन पर हम आपस में सहयोग कर रहे हैं – चाहे दोहा विकास दौर हो, चाहे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो, चाहे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग का मुद्दा हो अथवा वैश्विक आर्थिक संकट के आलोक में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में सुधार का मामला हो। हमारे संबंधों में ऐसे अनेक मुद्दे हैं जिनके संबंध में हमारा साझा दृष्टिकोण और विचारों में समानता है इसलिए मैं समझती हूँ कि हमें इस संबंध को बृहत्तर संदर्श में देखने की आवश्यकता है। कल्याणी शंकर: परन्तु क्या सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है: मेरा मतलब है कि प्रधान मंत्री की यात्रा के संबंध में क्या कहा गया। जैसाकि आरंभ में आपने सही ही कहा कि यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने विरोध जताया है। उन्होंने पहले भी विरोध जताया था। विदेश सचिव: निश्चित रूप से हम इसे गंभीरता से लेते हैं और हम चीनी पक्ष के सामने अपना दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में रखते रहे हैं। इस प्रकार हमने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है। कल्याणी शंकर: श्रीमती राव, क्या अगले माह दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा में कोई परिवर्तन होगा? वे वहां जा रहे हैं और मैं समझती हूँ कि भारत सरकार ने एक शर्त रखी है कि उन्हें कोई भी राजनैतिक वक्तव्य नहीं देना चाहिए। चीनी पक्ष इस यात्रा का विरोध भी कर रहा है। विदेश सचिव: हमारा मानना है और हमने हमेशा ही इस बात को चीन के समक्ष स्पष्ट किया है कि परम पावन दलाई लामा एक आध्यात्मिक हस्ती हैं, वे एक धार्मिक गुरु हैं और भारतीय जमीन पर राजनैतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते हैं। भारत में वे हमारे अतिथि हैं और वे भारत के किसी भी भाग की यात्रा करने के लिए स्वतंत्र हैं। कल्याणी शंकर: श्रीमती राव, चीनी विदेश मंत्री का भारत-रूस-चीन त्रिपक्षीय वार्ताओं में भाग लेने के लिए शीघ्र ही भारत आने का कार्यक्रम है। इस बैठक में किन मुद्दों पर चर्चा की जाएगी और हमारे विदेश मंत्री इन विन्दुओं को किस स्तर तक उठाएंगे? विदेश सचिव: कल्याणी, भारत-रूस-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच त्रिपक्षीय बैठकों का आयोजन किया जाता है। तीनों देशों ने मिलकर इस रूपरेखा का निर्माण किया है और इससे हम क्षेत्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा करने में समर्थ हुए हैं। निश्चित रूप से हमारे विदेश मंत्री अपने चीनी समकक्ष से मुलाकात करेंगे और इस बैठक से हमें आपसी हित के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने का अवसर मिलेगा। परन्तु आपको समझना चाहिए कि इस बैठक का बृहत्तर संदर्भ त्रिपक्षीय स्वरूप का होता है। इसमें त्रिपक्षीय बैठकें होंगी और यह बताने की आवश्यकता नहीं कि दोनों देशों के बीच जब भी बैठक का अवसर मिलता है और इस बार हमें मिलेगा भी, तब हम इन सभी मुद्दों को उठा पाएंगे क्योंकि स्पष्ट एवं मुक्त चर्चाओं के जरिए ही हम गलतफहमियों को दूर कर पाएंगे। कल्याणी शंकर: इस त्रिपक्षीय बैठक की कार्यसूची क्या होगी? विदेश सचिव: जैसा कि मैंने पहले ही कहा, त्रिपक्षीय बैठक की कार्यसूची में क्षेत्रीय स्थिति, तीनों देशों, जो इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण ताकतें भी हैं, के बीच वार्ता को बढ़वा देने के लिए उत्पन्न अवसरों तथा ऊर्जा सुरक्षा, बेहतर संपर्क सुविधा एवं तीनों देशों के शैक्षिक संस्थानों तथा विचार मंचों के बीच वार्ता और व्यापार एवं औद्योगिक संबंध जैसे मुद्दों को शामिल किया जाएगा। कल्याणी शंकर: वास्तव में यह एक लम्बी कार्यसूची होगी। पाकिस्तान के साथ भी हमारी समस्याएं हैं। पिछले माह दोनों विदेश सचिवों के बीच न्यूयार्क में मुलाकात होने की भी संभावना थी। विदेश सचिव: उनके बीच कोई मुलाकात नहीं हुई। कल्याणी शंकर: इसके उपरान्त क्या प्रगति हुई है? विदेश सचिव: इन बैठकों के दौरान पाकिस्तानी विदेश सचिव के साथ और विदेश मंत्री के साथ उनके पाकिस्तानी समकक्ष की उपयोगी बैठकें हुईं। पिछले माह न्यूयार्क में भी उनके बीच उपयोगी बैठकें हुईं। इन बैठकों के दौरान हम पाकिस्तानी पक्ष को यह संप्रेषित करने में सफल रहे कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है और हमारा हमेशा से मानना रहा है कि वार्ता के जरिए ही हम अपने संबंधों को सामान्य बना सकते हैं और दोनों देशों के बीच बेहतर समझबूझ स्थापित कर सकते हैं। यह अत्यंत अनिवार्य है कि पाकिस्तानी पक्ष को हम यह बात भारत की सरकार और जनता की ओर से बताएं कि पाकिस्तान की जमीं से सुरक्षित तरीके से भारत की जनता के विरुद्ध आतंकवादी गुटों, संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा निर्देशित आतंकवाद हमारे लिए अत्यंत चिन्ता का विषय है क्योंकि लम्बे समय से हम आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं। यदि दोनों देशों के बीच, दोनों देशों की संस्थाओं के बीच सार्थक वार्ता की जानी है, तो यह अनिवार्य होगा कि पाकिस्तान आतंकवाद के इस खतरे का गंभीरतापूर्वक एवं सार्थक तथा प्रभावी तरीके से समाधान करे। मुम्बई आतंकी हमले के संबंध में चल रही जांच के संदर्भ में यह बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। एक महीने बाद इस घटना को एक वर्ष पूरे हो जाएंगे तथा इसमें शामिल हफीज सईद जैसे लोगों पर पाकिस्तानी पक्ष द्वारा की जा रही कार्रवाइयों को हमारे लिए संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। इस बात के लिए हम पाकिस्तानी प्राधिकारियों पर हमेशा दबाव डालते रहे हैं और अनिवार्य है कि वे संकल्प के साथ इन व्यक्तियों के विरुद्ध सार्थक कार्रवाई करें क्योंकि इसी प्रक्रिया के जरिए इन समस्याओं का समाधान प्राप्त हो सकेगा। कल्याणी शंकर: हम हमेशा कहते रहे हैं कि दोषियों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। हम इस बात को बार-बार दोहराते रहे हैं। हम यह भी कहते रहे हैं कि समग्र वार्ता बहाल नहीं की जाएगी फिर भी इस दिशा में कोई सकारात्मक कार्य नहीं हुआ है। वे अभी भी वही कर रहे हैं, जो कहते रहे हैं, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। वे विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने की बात करते हैं। हमने साक्ष्य मुहैया कराए हैं परन्तु यह भी उनके लिए संतोषजनक नहीं है। विदेश सचिव: ठीक है, मेरे विचार से इस मुद्दे पर हमें असावधान नहीं होना है और मेरा ठोस रूप से मानना है कि हमें अपनी चिन्ताओं से पाकिस्तान को अवगत कराते रहना होगा क्योंकि जो हम कह रहे हैं, वह पाकिस्तान के भी हित में है। आतंकवाद के दुष्प्रभावों को आप पाकिस्तान में भी देख सकते हैं इसलिए मैं समझती हूँ कि समय आ गया है कि पाकिस्तान आतंकवाद के कारण उत्पन्न इस स्पष्ट खतरे को समझे। हमारी भाषा विवेक की भाषा है और यह भारत की सरकार और भारत की जनता की भाषा है। मैं समझती हूँ कि पाकिस्तान को समझना चाहिए कि हम इस बात को कितना गंभीर मानते हैं। कल्याणी शंकर: हम पाकिस्तान की बात कर रहे थे परन्तु अब मैं अफगानिस्तान की बात करना चाहूंगी जहां हाल ही में हमारे दूतावास पर हमला किया गया। पहले भी इस प्रकार का हमला किया गया था। अब किस प्रकार की स्थिति बन रही है? विदेश सचिव: पिछले हफ्ते और जुलाई 2008 में काबुल स्थित हमारे दूतावास पर हुए हमलों से एक बार पुन: न सिफ इस क्षेत्र को बल्कि संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद के खतरे का पता चला है। आतंकवादियों को इस क्षेत्र में अबाध रूप से अपनी गतिविधियां जारी रखने की अनुमति दी जा रही है और निश्चित रूप से हमें समझना होगा कि इस त्रासदी का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तत्काल इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए। और अफगानिस्तान में हुआ क्या है, हम अफगानिस्तान में वहां के लोगों की मदद करने के लिए हैं। अफगानिस्तान में हमारे द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यक्रमों ने अफगानिस्तान के लोगों के दिलों को जीता है इसमें कोई संदेह नहीं है। मैं स्वयं भी अफगानिस्तान गई थी और मुझे राष्ट्रपति करजई, विदेश मंत्री तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डा. रसूल के साथ मुलाकात करने का सुअवसर मिला। इन सभी ने अफगान जनता की सहायता हेतु अफगानिस्तान में भारत द्वारा निभाई जा रही भूमिका की एक स्वर में सराहना की। अफगानिस्तान में हमारा कोई अन्य एजेंडा नहीं है, हम वहां उन लोगों की सहायता मात्र करने के लिए हैं। कल्याणी शंकर: परन्तु पाकिस्तान को भी तो यह बात समझनी चाहिए। विदेश सचिव: बिल्कुल, आवश्यक है कि पाकिस्तान इस बात को समझे। पाकिस्तान इस बात को समझे कि हम वहां वैध कारणों से हैं, हम वहां अफगानिस्तान की जनता की मदद करने के लिए हैं। कल्याणी शंकर: ठीक है, भारत के लिए अगला महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, अगले माह प्रधान मंत्री की वाशिंगटन यात्रा। मैं समझती हूँ कि राष्ट्रपति ओबामा द्वारा कार्यभार संभालने के उपरान्त यह किसी राजनेता की पहली राजकीय यात्रा होगी। दोनों देशों के बीच क्या कार्यसूची रहेगी? विदेश सचिव: अमरीका के साथ हमारी वैश्विक भागीदारी है। जैसा कि हाल ही में राष्ट्रपति ओबामा ने हमारे प्रधान मंत्री से कहा, ''इस संबंध में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं।'' जुलाई माह में जब विदेश मंत्री श्रीमती हेलरी क्लिंटन ने भारत का दौरा किया था तब हमने दोनों देशों के बीच वार्ता की इस नई रूपरेखा की घोषणा की थी और आज इसमें न सिर्फ सामरिक अथवा सुरक्षा संबंधी मुद्दों बल्कि मानव संसाधन, कृषि, ऊर्जा, ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण, शिक्षा इत्यादि जैसे मुद्दे शामिल हैं। हमारे प्रधान मंत्री की वाशिंगटन यात्रा से इस संवाद को आगे ले जाने में मदद मिलेगी और इससे संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार और जनता के साथ हमारी सहभागिता और भी सुदृढ़ होगी। कल्याणी शंकर: कुछ वर्षों पूर्व आप श्रीलंका की उच्चायुक्त थीं और अभी हाल में तमिलनाडु में सभी दलों के नेता तमिल मछुआरों के साथ किए जाने वाले व्यवहार पर शोर मचाते रहे हैं। इस संबंध में आपकी क्या टिप्पणी है? विदेश सचिव: हम निरन्तर श्रीलंकाई प्राधिकारियों के संपर्क में हैं। जब कभी भी गलती से भटक कर हमारे मछुआरे श्रीलंकाई जल क्षेत्र में चले जाते हैं और उन्हें श्रीलंकाई पक्ष द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो हम तत्काल उनकी रिहाई के लिए उपाय करते हैं और उनके मामले को श्रीलंकाई प्राधिकारियों के साथ उठाते हैं। कल्याणी शंकर: तमिलों और उनके पुनर्वास के संबंध में आपका क्या कहना है? विदेश सचिव: जैसा कि आप जानती हैं, हमने तमिलों की सहायता के लिए 500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है जिससे कि वे अपने घरों को लौट सकें और दुबारा जीवन-यापन के दैनिक कार्यों में लग सकें। कल्याणी शंकर: श्रीमती राव, हमारे साथ होने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आडियो फाइल निम्नलिखित पर उपलब्ध है: http://www.newsonair.nic.in/exclusive-interview-nirupama-rao-all-india-radio.asp नई दिल्ली, 16 अक्तूबर, 2009 |
साक्षात्कार |
विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली |
Tuesday, October 20, 2009
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