This is big now a days , not only in MP but in many states. Problem stems from various factors :
1. competitive electoral politics of giving 24 hour electricity at election time even if power plants are not producing enough forcing boards to make open market purchases at exorbitant rates.
2. A complete apathy by public representatives to working of electricity regulatory commission and fixing of tariff. In Indore none of MLA or MP even bothers to attend public hearing.
3. No new power projects in private or government sector except indira sagar in last 20 years.
4. Huge scale pilferage and non recovery of bills and politicians who are responsible for under investment in generation and transmission support all such elements here thus harming electricity board twice.
5. Absence of well developed power trading mechanism in country.
6. Our fetish for IAS officers. They man regulatory body, they run electricity board ( why not people having experience of running utilities, they do the trading on power exchange also , why not MBAs from IIM ? ) result an inefficient, incapable, unresponsive and costly utility.
Economic survey of this yea shows that MP has second highest tariff in India and which in part explains why big industries are so shy of our state.
भोपाल। बिजली खरीदी में अनियमितताओं की शिकायत पर लोकायुक्त ने तीन विद्युत वितरण कंपनियों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है।
लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने नागरिक उपभोक्ता मंच द्वारा इस संबंध में की गई शिकायत की सुनवाई करते हुए मंगलवार को यह नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई आगामी सात सितंबर को भोपाल में निर्धारित की गई है। मंच द्वारा लोकायुक्त के समक्ष की गई शिकायत में कहा गया था कि वर्ष 2005 से वर्ष 2008 के बीच इन वितरण कंपनियों द्वारा 1770 करोड़ रुपए की अल्पकालीन बिजली खरीद में न केवल नियमों की अनदेखी की गई, बल्कि भारी भ्रष्टाचार भी किया गया। शिकायत में कहा गया कि खरीदी गई बिजली में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया, खरीदी के लिए नियामक आयोग से अनुमति नहीं ली गई तथा बिना निविदा के महंगी दर पर बिजली खरीदी गई। लोकायुक्त ने नोटिस जारी कर तीनों कंपनियों से जवाब मांगा है।
मामले की अगली सुनवाई सात सितंबर को भोपाल में होगी। उल्लेखनीय है कि विद्युत दरों से संबंधित टैरिफ की घोषणा के समय पत्रकारों ने नियामक आयोग के अध्यक्ष से भी बिजली खरीदी को लेकर सवाल किया था। उन्होंने बताया था कि 2006-07 में खरीदी गई बिजली में अनियमितता पाए जाने पर आयोग ने 1100 करोड़ से अधिक की स्वीकृति नहीं दी थी।
उनका कहना था कि चालू साल में खरीदी का ब्योरा अभी नियामक आयोग के सामने नहीं आया, यह मामला जब उनके सामने आएगा तो देखेंगे। दरअसल बिजली खरीदी को लेकर सरकार पर विधानसभा चुनावों के बाद से ही आरोप लग रहे हैं। शिकायत है कि चुनावों के मद्देनजर मतदाता नाराज न हों, इसलिए उस समय तो महंगी बिजली खरीदी गई, लेकिन उसके बाद नहीं। इसकी वजह से बिजली संकट बरकरार है। सामान्य तौर पर भी बिजली खरीदी को लेकर अनियमितताओं की शिकायत है।